मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं मुझे किसी इंसान से कोई शिकायत नहीं मुझे शिकायत है समाज के उस ढाँचे से जो इंसान से उसकी इंसानियत छीन लेता है मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है दोस्त को दुश्मन बनाता है मुझे शिकायत है उस तहज़ीब से, उस संस्कृति से जहाँ मुर्दों को पूजा जाता है और ज़िंदा इंसान को पैरों तले रौंदा जाता है रात भर सोए नहीं, जागे से हैं दिल के तालों पर जाले से पड़े क्यूँ हैं? जाले से पड़े क्यूँ हैं? आँखों में छुपे हैं जो सारे नींद से भरे वो गुब्बारे उड़ते क्यूँ नहीं? क्यूँ उड़ते वो नहीं? रात भर सोए नहीं, जागे से हैं दिल के तालों पर जाले से पड़े क्यूँ हैं? जाले से पड़े क्यूँ हैं? आँखों में छुपे हैं जो सारे नींद से भरे वो गुब्बारे उड़ते क्यूँ नहीं? क्यूँ उड़ते वो नहीं? पतझड़ क्यूँ ठहर गया? रातें क्यूँ सहम गईं? हम ना जाने कब यूँ खो गए, क्यूँ खो गए? ढूँढो मुझे, ढूँढो मुझे ढूँढो मुझे, ढूँढो मुझे जहाँ किसी के दुख-दर्द पे दो आँसू बहाना बुज़दिली समझा जाता है झुक के मिलना कमज़ोरी समझा जाता है ऐसे माहौल में मुझे कभी शांति नहीं मिलेगी, Meena दूर हैं ख्वाबों के वो मंज़र, ग़ैर हैं अपने भी क्यूँ अक्सर? परछाई भी क्यूँ बेज़ार है यहाँ? वक्त में बँटे हैं जो सारे, नींद से भरे वो गुब्बारे उड़ते क्यूँ नहीं? क्यूँ उड़ते वो नहीं? पतझड़ क्यूँ ठहर गया? रातें क्यूँ सहम गई? हम ना जाने कब यूँ खो गए, क्यूँ खो गए? ढूँढो मुझे, ढूँढो मुझे ढूँढो मुझे, ढूँढो मुझे (ढूँढो मुझे) रात भर सोए नहीं, जागे से हैं दिल के तालों पर (ढूँढो मुझे), जाले से पड़े क्यूँ हैं? जाले से पड़े क्यूँ हैं? (ढूँढो मुझे) आँखों में छुपे हैं जो सारे नींद से भरे वो गुब्बारे (ढूँढो मुझे) उड़ते क्यूँ नहीं? क्यूँ उड़ते वो नहीं?