खुदगर्ज़ धड़कने कहती ज़िस्म में जो रुह ये बहती दुनिया का दर्द वो सारा ज़ख्मी पलकें जो सहती मैं ही हूँ क्या तुम बता दो? मैं ही हूँ क्या तुम बता दो? अल्फ़ाज़ लबों के पीछे अपनी साँसों को ढूंढे बेताब वो आँसू सारे चेहरे वो पलकें मूंदें मैं ही हूँ क्या तुम बता दो? मैं ही हूँ क्या तुम बता दो? बस इतना मुझको बता दो जो भी ग़लत और सही है क्या छिपा यहीं कहीं है? बस इतना मुझको बता दो कैसे मैं ढूंढूँगा उसको? जो कभी देखा ही नहीं है ख्वाबों की कश्ती पे बहते हैं बेफ़िकरे जो मुझमें भी वो है छिपा मुड़कर जो देखोगे तुम अधूरी कहानी है सौ अधूरा ही उनका सिला उनका सिला, उनका सिला न-न-न-न-न-न न-न-न-न-न-न सफ़र सोने लगे जो अपने रोने लगे जो उम्मीदों की वो सुबह फिर से होने को है जो मैं ही हूँ क्या तुम बता दो? मैं ही हूँ क्या तुम बता दो? बस इतना मुझको बता दो जो भी ग़लत और सही है क्या छिपा यहीं कहीं है? बस इतना मुझको बता दो कैसे मैं ढूंढूँगा उसको? जो कभी देखा ही नहीं है