छोटी-छोटी सी रहीं हैं मुलाक़ातें बातें पूरी ना हो सकी कभी आँखों-आँखों में हल्का सा नशा है गहरा पानी में डूबा नहीं सुनो, ज़रा-ज़रा धीरे चलो मचल-मचल कहानी अब शुरू-शुरू होने को है ऐसा लगता है पहले कभी तो हम मिले थे, कहाँ ये ना पूछो अब जो आए हो मेहमान बन के तो दो पल रुको तो सही देखो, मौसम भी ठहरा हुआ है रंग ऐसे खिले हैं जहाँ में अब जो आए हो मेहमान बन के तो दो पल रुको तो सही बूँदों-बूँदों से बने हैं जो बादल बरस जाने दो, पिघल जाने दो थोड़ी-थोड़ी सी कैसी है ये हलचल? समझ में आए सिर्फ़ दीवानों को सुनो, ज़रा-ज़रा धीरे चलो मचल-मचल कहानी अब शुरू-शुरू होने को है ऐसा लगता है पहले कभी तो हम मिले थे, कहाँ ये ना पूछो अब जो आए हो मेहमान बन के तो दो पल रुको तो सही देखो, मौसम भी ठहरा हुआ है रंग ऐसे खिले हैं जहाँ में अब जो आए हो मेहमान बन के तो दो पल रुको तो सही (ऐसा लगता है पहले कभी तो) (हम मिले थे, कहाँ ये ना पूछो) (अब जो आए हो मेहमान बन के) (तो दो पल रुको तो सही) (देखो, मौसम भी ठहरा हुआ है) (रंग ऐसे खिले हैं जहाँ में) (अब जो आए हो मेहमान बन के) (तो दो पल रुको तो सही)