इश्क़ की साज़िशें, इश्क़ की बाज़ियाँ हारा मैं खेल के दो दिलों का जुआ क्यूँ तूने मेरी फ़ुर्सत की? क्यूँ दिल में इतनी हरकत की? इश्क़ में इतनी बरकत की ये तूने क्या किया? फिरूँ अब मारा-मारा मैं चाँद से बिछड़ा तारा मैं दिल से इतना क्यूँ हारा मैं? ये तूने क्या किया? सारी दुनिया से जीत के मैं आया हूँ इधर तेरे आगे ही मैं हारा, किया तूने क्या असर? मैं दिल का राज़ कहता हूँ कि जब-जब साँसें लेता हूँ तेरा ही नाम लेता हूँ ये तूने क्या किया? ♪ मेरी बाँहों को तेरी साँसों की जो आदतें लगी हैं ऐसी जी लेता हूँ अब मैं थोड़ा और मेरे दिल की रेत पे आँखों की जो पड़े परछाई तेरी पी लेता हूँ तब मैं थोड़ा और जाने कौन है तू मेरी मैं ना जानूँ ये, मगर जहाँ जाऊँ मैं, करूँ मैं वहाँ तेरा ही ज़िकर मुझे तू राज़ी लगती है जीती हुई बाज़ी लगती है तबीयत ताज़ी लगती है ये तूने क्या किया? मैं दिल का राज़ कहता हूँ कि जब-जब साँसें लेता हूँ तेरा ही नाम लेता हूँ ये तूने क्या किया?