हुआ मुसाफिर एक दिन तो वो भी था कभी मुझको मिला न था मुझको मेरा ही पता मैं हूँ क्या रुबरु मैं खुदसे जब हुआ तब उसी जगह बनी जीने की एक फिर वजह इस तरह हुआ मुसाफिर फिर एक वजह से फिर रुबरु हूँ ज़माने से बना हूँ मेरे फ़साने से हुआ मुसाफिर फिर एक वजह से फिर रुबरु हूँ ज़माने से बना हूँ मेरे फ़साने से हुआ मुसाफिर हुआ मुसाफिर अब किसी से कोई न गिला, दूँ तुझे बता चला मैं अकेला ही चला, है मुझे पता साथ दे मेरा जो यहाँ वो है मेरा हो कोई मुझसा हूबहू, ये वजह तेरी ही वजह से तो बना ये तराना गूँजे ईन पहाड़ों में ये रोज़ाना लफ़्ज़ कैसे निकले ये मेरी ज़ुबानी याद है लेकिन मुझे हर कहानी हुआ मुसाफिर फिर एक वजह से फिर रुबरु हूँ ज़माने से बना हूँ मेरे फ़साने से हुआ मुसाफिर हुआ मुसाफिर हुआ मुसाफिर