छवि लखि मैंने श्याम की जब से भई बाँवरी मैं तो तब से बाँधी प्रेम की डोर मोहन से नाता तोड़ा मैंने जग से ये कैसी निगोड़ी प्रीत ये दुनिया क्या जानें मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनियाँ क्या जाने। मोहन की सुन्दर सूरतियां मन में बस गई मोहनी मूरतियां जब से ओढ़ी श्याम चुनरियां लोग कहे मैं भई बावरियां मैंने छोड़ी जग की रीत ये दुनिया क्या जानें मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनियाँ क्या जाने। मोहन ने ऐसी बंसी बजाई गोप गोपियां दौड़ी आई सब ने अपनी सुध बिसरायी लोक लाज कुछ काम न आई फिर बाज उठा संगीत ये दुनिया क्या जानें मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनियाँ क्या जाने। मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनियाँ क्या जाने क्या जाने, ये दुनियाँ क्या जाने मुझे मिल गया मन का मीत ये दुनिया क्या जानें मेरी लगी श्याम संग प्रीत ये दुनियाँ क्या जाने।